
यह देश है कि भीड़? – कविता
भीड़ के ख़तरों को तुम नहीं जानते भीड़ सुनती है सिर्फ लाउडस्पीकर को भीड़ सच नहीं सुनती भीड़ सुन नहीं सकती कैसे सुन सकता है कोई साफ-साफ किसी शोर को भीड़ आती है किसी बांध के टूटने के सैलाब सी भीड़ विपदा होती है जो गिर पड़ती है मनुष्यता पर जिसे रोका जा सकता है सिर्फ मनुष्य हो कर भीड़ बड़ी कारगर है मंदिरों-मस्जिदों-गिरजों-गुरुद्वारों में … Continue reading यह देश है कि भीड़? – कविता