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टाइम्स ऑफ इंडिया, लखनऊ संस्करण में एक विशेष पन्ना, चौथे पेज पर ‘Dance of Democracy’ और उस पर बिग बॉटम में (तस्वीर में देखें) ये ख़बर, जो बता रही है कि ‘पिछले 5 सालों में सोनिया गांधी की सम्पत्ति 21 फीसदी बढ़ी, जिसमें इटली में उनकी पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सा भी शामिल है।’ इस ख़बर में लिखा गया था कि सोनिया की इटली में पारिवारिक संपत्ति से हासिल ब्याज़ 7.5 करोड़ है, जबकि ये 23.2 लाख है। और तो और उनके पास मौजूद ज़ेवरात की कीमत 59.97 करोड़ रुपए बताई गई थी, जो कि दरअसल 59.97 लाख रुपए है।


अख़बार ने इसके बाद 14 अप्रैल के संस्करण में इसका माफ़ीनामा छापा, जिसमें बेहद सहजता से केवल 4 लाइनें लिख कर, इस को मामूली ग़लती बताते हुए माफ़ी मांग ली गई। मूल ख़बर को बड़े आकार में, बाकायदा बड़ी ख़बर की तरह प्रकाशित किया गया था, जबकि ये ख़बर ग़लत थी। जबकि माफ़ी को साइड सिगल कॉलम में 4 लाइनों में ऐसे प्रकाशित किया गया कि किसी की नज़र भी न जाए।

मूलतः ये न केवल पाठकों से धोखा है कि उनको ग़लत ख़बर धूमधाम से दी जाए और उसका माफ़ीनामा और सही ख़बर कोने में छिपा दी जाए। यही नहीं, ये एक तरह की मानहानि भी है, जो किसी नेता या किसी भी शख्स के बारे में ग़लत तथ्य छाप कर की जाए। ये ग़लतियां भारतीय मीडिया में एक प्रवृत्ति बनती जा रही हैं।
क्या कांग्रेस पार्टी या उसके नेताओं ने ये ख़बर देखी? देखी तो क्या इस पर कोई आपत्ति जताई? क्या वो इस कोने में छिपा दिए गए माफ़ीनामे से संतुष्ट है या फिर उसने चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की है? और अगर इस तरह की ख़बरों पर कार्रवाई नहीं होती, तो कैसे रोका जा सकता है इस प्रवृत्ति को…?
क्या ग़लती की आड़ में कहीं, ये क़ानून तोड़ते हुए, आप तक ग़लत ख़बर पहुंचा कर, बाद में चालाकी भरी माफ़ी मांग कर, आपकी सोच को मैनिपुलेट तो नहीं किया जा रहा?
सवाल ये है कि ये लापरवाह पत्रकारिता है या फिर पक्षधर पत्रकारिता? क्या इसे महज लापरवाही माना जाए, जबकि माफ़ीनामा लिखा जाता है और उसे आपकी नज़रों से छिपा कर छापा जाता है…और अगर ये पक्षधर पत्रकारिता है, तो क्या ये हमसे हमारा लोकतंत्र, धीरे-धीरे छीन रही है?
क्या ये लोकतंत्र के ख़िलाफ़, सुपारी पत्रकारिता है?
Reported by: Alexander Sen
Written by : Mayank Saxena
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