उन दिनों मैं एक बच्चा पत्रकार हुआ करता था। रिपोर्टर के तौर पर मेरे पास जो बीट्स थी, उनमें MRTP commission भी शामिल था। अंग्रेजी में monopolies and restrictive trade practices commission, हिंदी नाम— प्रतिबंधित और एकाधिकार व्यापार व्यवहार आयोग। कमीशन का दफ्तर दिल्ली के शाहजहां रोड पर था, जहां उसकी अपनी अदालत लगती थी। विधिसम्मत आचरण ना करने वाली कंपनियों के खिलाफ मुकदमे चलते थे।
तो बतौर रिपोर्टर एमआरटीपी कमीशन में मेरा वह पहला दिन था। केस दिल्ली की एक बदनाम बिल्डर कंपनी के खिलाफ था। पीड़ित पक्ष का कहना था कि उसे जो फ्लैट दिया गया उसका कब्जा लेते ही दीवार में क्रैक आ गया। बिल्डर के दफ्तर के चक्कर काटते साल भर से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन अब तक मामले का कोई हल नहीं निकला।
शिकायकर्ता और बचाव पक्ष दोनो जज साहब का इंतज़ार कर रहे थे। जज साहब कोर्ट में पहुंचे। मुंह में पान भरा था। आते ही उन्होने कंपनी के वकील से कहा— चावला साहब खूब मोटे हो गये हो कंपनी का माल खाकर-खाकर! चावला साहब ने दांत निपोर दिये। जज साहब ने अगला सवाल किया— आपके हरिद्वार वाले प्रोजेक्ट का क्या हुआ? वकील ने जवाब दिया— अगले साल पजेशन है। जज साहब बोले— यार हमें भी दिला दो एक फ्लैट, बुढ़ापे में वहीं भजन करेंगे गंगा किनारे। वकील ने फिर दांत निपोरे। जज साहब का तीसरा सवाल— अच्छा बताओ करना क्या है, बहुत शिकायत आ रही है, आपकी कंपनी के खिलाफ।
बदले में कंपनी के वकील ने अगली तारीख मांगी और जज साहब ने फौरन दी। पीड़ित पक्ष के वकील ने अपनी हकलाती हुई अंग्रेजी में विरोध किया तो जज साहब ने कहा— चलो जी हो गया। बहुत सारे केस पेडिंग हैं। कोर्ट है, कोई ग्रोसरी की दुकान नहीं कि काउंटर पर आये और आते ही सामान मिल गया।
बरसो बाद जब मैं जॉली एलएलबी देख रहा था तो मुझे वही कहानी याद आ रही थी। कोर्टरूम की ऐसी कहानियां हमें हर रोज याद आती है। मैने जिसका जिक्र किया वह देश की राजधानी के बीचो-बीच चलने वाला एक कोर्ट था। छोटे शहरों की कचहरियों के दृश्य याद कीजिये जहां मुर्गी चोर या साइकिल चोर की मां अपने बेटे के बेल के लिए महीनो चक्कर काटती रहती है और एक फैसले की कॉपी के एवज में पेशकार जज साहब की नाक के नीचे खुलेआम रिश्वत लेता है।
सड़ांध भरी न्याय व्यवस्था इस देश का सच है। प्रेमचंद के उपन्यास निर्मला में एक संवाद था— `लौंडा है तो मिडिल पास है। लेकिन कोर्ट-कचहरी के काम में तेज है’। न्याय आपके पक्ष में होगा या यह इस बात से तय होगा कि आप कितने `तेज’ हैं। Law will take its on course एक घिसा हुआ जुमला है। कानून के हाथ लंबे होते हैं और इतने लंबे होते हैं कि असली अपराधी को छोड़कर उससे कहीं आगे निकल जाते हैं।
आपने देश में तरह-तरह के आंदोलन देखे होंगे। लेकिन क्या आपने कोई ऐसा आंदोलन देखा है, जो न्याय व्यवस्था में बदलाव के लिए हो। नहीं हो सकता क्योंकि पार्टियों से परे देश के पूरे राजनीतिक तंत्र को यही सिस्टम सूट करता है। हर ताकतवर आदमी इस तंत्र का इस्तेमाल अपने तरीके से करता है। कानून आपके साथ होगा या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास उसे अपने पक्ष में मोड़ने की ताकत है या नहीं। आप एक जैसे मुकदमों में अदालत के अलग-अलग फैसले देख सकते हैं।
लालू यादव के मामले में सुनवाई के दौरान माननीय न्यायधीश की टिप्पणियों पर गौर करेंगे तो समझ में आ जाएगा कि न्याय तंत्र का स्तर क्या है। अगर न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए कोई बड़ा कदम उठाया जाता है तो विरोध में सड़क पर उतरने वाले काले कोटधारी ही होंगे। हरिशंकर परसाई की छोटी सी कहानी से बात खत्म करना चाहता हूं—
एक बार नर्क वासी दीवार तोड़कर स्वर्ग में आ घुसे। स्वर्ग में पहले से रह रहे लोगो ने इस अवैध कब्जे के खिलाफ कोर्ट की शरण ली। लंबा मुकदमा चला और आखिरकार जीत स्वर्ग पर जबरन कब्जा करने वाले नर्कवासियों की हुई। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि सारे अच्छे वकील नर्क में ही थे।
kya baat kya khub kataksh kiya aapne bahut khub jitni tarif kare kam hai apki