तभी अचानक
सावन के दिव्य महीने में
सर्वथा नूतन सरकार ने …
एक नया नवेला नियम बनाया
घर में दफ्तर में
बाजार में रात दिन दोपहर मे
नदी नाले नहर में
डूब कर या
खा कर जहर जो जान गवांएगा
ऐसा आत्म हत्यारा
देश के लिए शहीद माना जाएगा
ऐसे आत्म बलिदानियों की
भव्य समाधि बनेगी
नगर चौक पर
मूर्ति बिठाई जाएगी
जन कवियों के मुख से विरुदावलि
गायी जाएगी
नये नियम ने जन मानस के मन भरा
नया उत्साह
स्वयं घात कर प्राणदान ने
खोली एक सुपावन राह
ऐसे मौलिक नियम ने सरकार की गरिमा
बढाई
इस प्रकार एक नई सरकार ने
देश सेवा की भावना बढाई
इस विधान में
प्राण देने पर कृषित किसानों को
बेरोजगार नौजवानों को
नव व्याहता ललनाओं को
बुनकर जुलाहों को
धुनिए मल्लाहों को
कोई धन मान न बांटा जाएगा
सरकार के पास भी इस भेद भाव का कोई
ठोस उत्तर न था
आत्म घात करने वाले प्रत्येक जन के साथ
समान व्यवहार की
मांग कर रही थी जनता
सब की एक सरल सी मांग थी
हर गांव हर नगर मोहल्ले में
प्राण दान केन्द्र बनाया जाय
जो मरना चाहें
उनके नाम का एक सिक्का चलाया जाए
आगे क्या हुआ कह पाना न कठिन है
न सरल
सुनने में आया है
सरकारें वितरित कर रही है
सरकारी प्राणघाती गरल
कवि नर्तक गुणवंत मुदित थे
पा कर ऐसा नवल विहान
एक झटके में अमीर गरीब
नाना धर्मी सब हुए समान
सरकार ने मरण का अलंकरण किया
देश की सीमा पर मरने वालों को भी
देश हित शहीद के रूप में
वरण किया
अब आर्यवर्त में
आत्म घात एक उत्सव मनोहर था
और आत्म घाती शव राष्ट्रीय धरोहर था ।
बोधिसत्व, मुंबई