राजनीतिक असफलताओं को युद्ध की ओट से ढांका नहीं जा सकता .. यह विरोध जितना पाकिस्तान के लिए है उतना ही भारत या किसी भी राष्ट्र के लिए. इस तरह के राष्ट्रवाद की आज इस दुनिया को ज़रूरत नहीं है| सरकार की मंशा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने और युद्धोन्माद फैलाने वाली भारतीय मीडिया अपराधी है | शांत बैठने को किसी ने नहीं कहा … .
.१. सत्ता में आने के लिए जनता को गुमराह करने के लिए इतने जुमले गढ़े गए अच्छे दिन, 2 करोड़ रोज़गार , काला धन , सबके खाते में 15 लाख इसके साथ, देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़े दावे किये गए …कि हम सत्ता में आये तो पकिस्तान की और से आ रहे आतंकियों की हमारी और देखने की हिम्मंत नहीं होगी etc …
2. रोज़गार , विकास , काला धन , महगाई , सब मोर्चे से मोदी सरकार की विफलता से जनता में बहुत तेज़ी से उसके प्रति असंतोष प्रतिदिन बढ़ता गया| .
३. मजबूत सुरक्षा का दावा भी खोखला निकला और पठानकोट और उडी में सैनिक ठिकानो पर हमला हुआ , इंटेलिजेंस बेहद निष्फल रही ….इन हमलो के बाद चुनाव से पहले मजबूत राष्ट्र के किये दावों पर सवाल उठाना लाजिमी था , वोह उनके बडबोलेपन का ही प्रतिफल था ….एक और हर वादा झूठा साबित होने से जनता में घोर निराशा बढ़ रही थी और ७ राज्यों के चुनाव सर पर थे …
4. किसी ने नहीं कहा की आतंकवाद और उसके पनाह देने वाले पकिस्तान को जवाब मत दो …उसको अलग थलक करना जरूरी था …युद्ध हमेशा बुरा है किसी के भी लिए ….मोदी सरकार को चिंता अपने base को बचयाने की थी ..इसलिए सेना की वीरतापूर्ण कारवाही का ढोल पीटकर उसको भी भुनाने की कोशिश की गयी और कॉरपोरेट मीडिया, जो भाड़ में बदल चूका है, उसने बखूबी साथ दिया की एक बार फिर छदम राष्ट्रवाद और युधुन्माद में लोगो को इतना डुबो दो की वोह सरकार की नाकामियों को भूल जाएँ और ७ राज्यों के चुनाव में बेडा पार हो जाये . विरोध बडबोलेपन का है ….इस pr का है…..
5. सबसे अहम् बात यह है कि खाया पीया उघाया माध्यम वर्ग , जो कॉरपोरेट मीडिया द्वारा फैलाई जा रही छदम राष्ट्रवाद और युदौंमाद की धुन पर नाच रहा है, वोह सोशल मीडिया पर ऐसे लिख रहा है की यह बहादुरी उसने ही की हो , और एक झटके में देश की सारी मुश्किलें ख़तम हो गयी हों | इनके इस भोलेपन कहे या मुर्खता पर सिर्फ तरस आता है …./
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