By- Pankaj Srivastava
कैराना का भाजपाई झूठ सामने आना कोई आश्चर्य नहीं, उसके दंगाई चरित्र का एक और प्रमाण ही है। देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसे विश्वास नहीं कि जनता उसके विकास (जिसका वह दुनिया भर में ढिंढोरा पीटती है) के काम पर विश्वास करके वोट देगी, इसके उलट वह तमाम अफ़वाहें फैलाकर हिंदुओं को मुसलमानों के ख़िलाफ़ गोलबंद करके वोट पाना चाहती है। लोकसभा चुनाव के पहले मुज़फ़्फरनगर की आग भड़का कर जो सफलता पाई गई थी, कुछ उसी अंदाज़ में विधानसभा के पहले भी तैयारी की जा रही है।
लेकिन माफ़ करिये। कैराना का गणित चाहे जो हो, यह तो सच है ही कि तमाम शहर-कस्बों में आबादी का अनुपात बदल रहा है। मुस्लिम उन्हीं इलाकों में रहना पसंद कर रहे हैं जहाँ मुसलमानों की घनी आबादी है और हिंदू उन इलाकों से दूर वहाँ जाना चाहते हैं जहाँ हिंदू ज़्यादा हैं। पलायन का एक मकसद अगर बेहतर जीवन स्तर की तलाश है तो दूसरी सुरक्षा भी है।
सवाल यह है कि अपने ही शहर में विभिन्न समुदायों के बीच सुरक्षा का यह प्रश्न कैसे खड़ा हुआ ? क्या यह सच नहीं कि अलग-अलग धर्मों के बावजूद लोग सदियों से एक साथ रह रहे थे और एक साझा संस्कृति विकसित हो चुकी थी। इस पर एक राजनीतिक अभियान के तहत चोट और किसी ने नहीं बीजेपी और उसकी वैचारिक प्रणेता आरएसएस ने की। पूरी हिंदी पट्टी में राम मंदिर आंदोलन के समय से जैसा ज़हर बोया गया, उसने अविश्वास में डूबी पीढ़ियाँ पैदा कीं। लोग एक दूसरे से दूर होते गये। अपरिचय और आशंका में डूबा नया दौर शुरू हुआ। अफ़सोस तो यह कि इस अभियान का जैसा वैचारिक प्रतिरोध ख़ुद को सेक्युलर कहने वाली पार्टियों की तरफ़ से होना चाहिए था, वह नहीं हुआ।
अब जिस पार्टी ने लोगों को एक दूसरे से दूर किया, वह पलायन का मुद्दा उठा रही है। मुज़फ्फ़रनगर से हज़ारों मुस्लिम परिवारों ने पलायन किया, लेकिन उसने कभी कोई सूची जारी नहीं की। आख़िर यह परिवार कैराना जैसे कस्बों में ही तो गये हैं। ऐसे में वहाँ मुस्लिम आबादी का बढ़ जाना स्वाभाविक ही है जैसे कि मुज़फ़्फरनगर के दंगाग्रस्त इलाकों में मुस्लिम आबादी में आई कमी।
आरएसएस के बटुक आबादी के इस बदलाव के तथ्य को नफ़रत फैलाने के अभियान में इस्तेमाल करते हैं और तोगड़िया जैसे डॉक्टर हिंदुओं को ज़्यादा बच्चे पैदा करने की मर्दानगी दिखाने आह्वान करते घूमते हैं। सच्चाई यह है कि देश में आबादी घटने के संकेत हैं और सभी धर्म के लोग इसका महत्व समझ रहे हैं। हाँ, जहाँ ग़रीबी ज़्यादा है, वहाँ घटने की रफ़्तार अपेक्षाकृत धीमी है।
इनसे यह ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि आख़िर भारत के किसी शहर या कस्बे में मुस्लिमों का बहुसंख्यक हो जाना संविधान की किस धारा का उल्लंघन है और अगर आपको अल्पसंख्यक हो जाने को लेकर इतना ही भय है तो सोचिये कि देश के अल्पसंख्यक किस हालत में रहते हैं। उन्हें कौन भयभीत करता है, क्या यह बताने वाली बात है !