By-Mayank Saxena
लोकल स्टेशन पर रात के 11.30 बजे हैं…पैंट शर्ट में एक ठीक ठाक आदमी, पत्नी और दो बच्चों के साथ खड़ा है…आने जाने वालों से एक्सक्यूज़ मी कह रहा है…कमीज बाहर है पसीने से भीगी, छोटा बच्चा रो रहा है, साथ में एक लड़की है कोई 10 साल की…पत्नी के चेहरे पर भयंकर निराशा साफ़ दिख रही है, लेकिन कोई उस पर गौर नहीं करता…मैं भी नहीं! एक्सक्यूज़ मी सुन कर रुकता हूं कि शायद रेल के बारे में पूछ रहा है…मराठी में आगे की बात कहता है, ‘सर, बच्चों को वड़ा पाव खिलाना है…’ कह कर रुक जाता है और मैं उसे अनदेखा कर बेरुखी से आगे निकल जाता हूं… दो कदम बढ़ा कर ठिठकता हूं और रुक जाता हूं…
मेरे कान में नाना पाटेकर का इंटरव्यू गूँज रहा है अब…’अगर मुम्बई में सड़क पर अचानक कोई आपसे मदद मांगे तो उसे भिखारी न समझे, वह किसान हो सकता है…’
मुड़ता हूं तो सबसे पहले उसकी बच्ची की ओर निगाह जाती है, 10 साल की बच्ची पिता का हाथ थामे है और उसकी बेबसी देख रही है, पत्नी को देखता हूं जो गोद में बच्चा लिए शर्मिंदगी और निराश में सर झुकाये है…आदमी को देखता हूं जो हर आने जाने वाले को रोकने की कोशिश कर रहा है…
मैं लौटता हूं और उस से उसका नाम पूछता हूं, वो ड्राइविंग लाइसेंस दिखाता है…विलास…
अगला सवाल,
कहां के रहने वाले हैं?
जालना…
यहां कैसे आये हैं?
काम की तलाश में, कोई गाड़ी चलाने को मिल जाए…
खेती नहीं है?
है सर…बहुत है पेट पालने को लेकिन बारिश…
अब पत्नी की आँख में आंसू हैं, बेटी मुझे गुस्से में घूर रही है..मैं जेब में से बटुआ निकालता हूं, 10 का नोट निकालता हूं और फिर खुद से शर्मिंदा हो जाता हूं…10 रुपये? वो भी जब मेरे अलावा उतनी देर में कोई नहीं रुका?
100 का नोट निकाल कर उसके हाथ में रख देता हूं… बच्ची की नज़रों का सामना नहीं कर सकता, सो चल देता हूं… विलास पीछे से बार-बार शुक्रिया कह रहा है…मैं प्लेटफॉर्म पर आ जाता हूं
बोरीवली की रेल आने में 10 मिनट हैं, अचानक वो परिवार आ कर ज़मीन पर बैठ जाता है, पसीना चू रहा है…माँ, खाने का डब्बा बच्ची के आगे बढ़ा देती है…अचानक मुझे देख विलास सकपका जाता है, 2 सेकंड के लिए मुझे भी ठगे जाने का अहसास होता है..लेकिन अचानक लगता है कि वह करे भी तो क्या? आज रात का इंतज़ाम हुआ है लेकिन कल? और क्या डब्बे में खाना देख कोई उसकी मदद करेगा…
मैं उसकी ओर बढ़ता हूं और वो हाथ जोड़ कर खड़ा है…उसकी बेटी डब्बा अपने पीछे छुपा रही है और बस रोने ही वाली है…बीवी को शायद ही कुछ समझ आ रहा हो…विलास हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगा…मैं सिर्फ़ इतना कह सका कि माफ़ी मत मांगो और वो मेरे पैरों में झुकने लगा है…मैं उसकी बेटी के सामने ये होते देख और शर्मिंदा हूं… बाप, छोटी बेटी का हीरो होता है…मेरे मुंह से शब्द ही नहीं निकल पा रहे हैं…विलास बोले जा रहा है…
सर, चोर नहीं हैं…सर क्या करें…न खेती है, न काम…बच्चों का मुंह देख कर ख़ुदकुशी भी नहीं…मैं अपने आंसू रोक नहीं पा रहा…शब्द इतने जाम हो गए कि बस उसको भींच के गले लगा लिया…आस पास 2-4 लोग इकठ्ठा हो गए हैं..मैं उनको देख रहा हूं पर महसूस सिर्फ लाखों विलासों को कर पा रहा हूं… विलास अभी भी माफ़ी मांग रहा है और हम दोनों रो रहे हैं…हाँ अब मैं बोल सकता हूं
‘तुम्हारी क्या गलती भाई…खाना दिखा दोगे तो कोई मदद नहीं करेगा..फिर बच्चों को…’ बस शब्द फिर ख़त्म थे…एक वाक्य और कह सका…मैं जानता हूं तुम भिखारी नहीं हो, ठग भी नहीं हो…लोग रेल के आने की हड़बड़ी में व्यस्त हो गए थे..मैं 100 का एक और नोट उसके हाथ में थमा के बस यही कह सका…’विलास भाई 200 रुपये ही दे पाया हूं, सोच समझ कर खर्च करियेगा…’ वो सिर्फ यह कह सका कि कोई काम हो तो दिलवा दीजिये…रेल आ गयी है…मैं बढ़ चला हूं… उसकी बच्ची मुझे अभी भी देख रही है और मैं अभी भी आँखें नहीं मिला पा रहा हूं…
ट्रेन स्टेशन छोड़ रही है, विलास का परिवार प्लेटफॉर्म पर अपने विस्थापन के प्रतीक बैग रखे खाना खा रहा है…विलास पीछे नल से पानी भर रहा है…मैं रोता जा रहा हूं… अनवरत…हम और कितने विलास बनाएंगे…मुझे बताइये, मैं अभी भी रेल में हूं और मेरे आंसू थम नहीं रहे हैं…
100 रुपये से कुछ नहीं होगा, इन विलासों के लिए कुछ कर पाएंगे क्या कभी हम? ये घटना सिर्फ 35 मिनट पहले की है…कुछ कीजिये सब…मैं समझ नहीं पा रहा कि और क्या करूं सिवाय इसके कि मुझे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही है…हो सकता है कि सुबह तक मैं ठीक हो जाऊं पर विलास कल फिर कहीं खड़ा होगा…
और हां, तमाम वैचारिक मतभेदों से अलग शुक्रिया नाना पाटेकर…
ट्रेन बीच में रुक गयी है…मैं सोच रहा हूं उनके बारे में जिनकी ज़िन्दगी बीच में ठहर गयी है…