रिहाई मंच ने कहा कि पीलीभीत में हिरासत में हत्या के लिए सपा सरकार जिम्मेदार। सद्दाम और शकील अहमद को पूरनपुर कोतवाली पुलिस ने बुधवार को चोरी के आरोप में उठाया जिनकी हिरासत में मौत हो गई। पुलिस ने बाद में चोरी के आरोप में उठाए गए इन युवकों पर मादक पदार्थों की तस्करी का आरोप लगा दिया।

लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि हर बार इस तरह की घटनाएं दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, गरीब-वंचित वर्ग या सत्ता के खिलाफ ंअपने हक के लिए आवाज़ उठाने वालों के साथ ही क्यों होती हंै? 2011 में लखीमपुर खीरी में सोनम भैंस चराने के लिए निघासन थाने के पास मैदान में गई थी, उसके साथ थाने में ही बलात्कार कर हत्या कर दी गई।
पुलिस की विधि विरुद्ध और अपराधिक कारिस्तानियों में कई बार उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त रहा है खासकर उन मामलों में जहां पीडि़त का संबंध शोषित-वंचित समाज से या उनके हक-अधिकार के लिए काम करने वाले समूहों से रहा है। उत्तर प्रदेश में दलित दम्पत्ति को पुलिस के सामने नंगा करने का मामला हो या हरियाणा में दलित परिवार के घर में पेट्रोल डाल कर आग लगाने और दूध पीते बच्चों की हत्या की घटना, सब में सत्ता और पुलिस प्रशासन की भूमिका संदिग्ध रही है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद न्यायालय परिसर में उन पर पूर्व घोषित हमला और पुलिस का खामोश तमाशाई बने रहना या हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला मामले में इंसाफ की मांग कर रहे आंदोलनकारियों की फर्जी आरोपों में गिरफ्तारी और हिरासत में उनके साथ मारपीट, सरकारों की दमनकारी नीतियों को बयान करने के लिए काफी हैं।
सीतापुर के लहरपुर थाना अंतर्गत पट्टी देहलिया गांव में दबंग प्रधान का समर्थन न करने पर अति पिछड़ा वर्ग के लोगों के घरों को बेखौफ जला देना पुलिस प्रशासन द्वारा आँँख बंद कर लेने का ही नतीजा था तो बलिया के शिवपुर दियर और बिसुनपुरा गांव में सपा विधायक के इशारे पर दलितों के घरों को आग लगा दी गई और बहुत मुश्किल से घटना की प्राथमिकी दर्ज हो पाई।
अफसोस की बात यह है कि जहां एक तरफ इस तरह की घटनाओं की गंभीरता को कम करने और पीडि़तों के दानवीकरण करने के लिए बड़ी धुर्तता के साथ कहानियां गढ़ने का काम शुरू कर दिया जाता है तो दूसरी तरफ मुआवज़े की राजनीति से सामाजिक न्यायवादी और धर्मनिरपेक्ष बने रहने का ढोंग किया जाता है।
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