अफजल गुरु और इशरत जहां को कब्र से निकालकर झाड़ – पोंछकर आपके सामने खड़ा करने के पीछे नागपुर के राष्ट्रपुरोहितों की क्या सोच है?
1. डॉ. रोहित वेमुला ने देश के बहुजनों में अभूतपूर्व एकता पैदा कर दी है.
2. बीजेपी ने हाल के महीनों में एक भी चुनाव नहीं जीता है. बिहार का दर्द उतर नहीं रहा है. नरेंद्र मोदी के अपने बनारस जिले में ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में बीजेपी के हाथ जीरो आया. पंजाब से लेकर केरल और तमिलनाडु से लेकर असम तक हार बीजेपी का मुंह ताक रही है.
3. जिस हैदराबाद नगर निगम की तीन में से दो लोकसभा सीटें बीजेपी गठबंधन के पास हैं, वहां दो फरवरी के स्थानीय चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 150 में सिर्फ 4 सीटें आईं.
4. भारत के नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस, NCBC ने OBC के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की सिफारिश की है.
5. SC, ST कमीशन भी ऐसी सिफारिश करने वाले हैं.
6. सेंट्रल यूनिवर्सिटीज के वाइस चासलरों को जाति भेदभाव पर विचार करने के लिए बैठक करनी पड़ रही है. बैकलॉग पूरा करने का दबाव बढ़ रहा है.
7. मनुस्मृति ईरानी की विदाई पर बीजेपी में मंथन हो रहा है.
ऐसे वक्त में बहुजन लोग हक अधिकार की बात भूलकर सिर्फ हिंदू बन जाएं, इसके लिए दो मुसलमानों को कब्र खोदकर निकाला गया है. RSS के दिमाग को समझिए.
वाह, डॉ. रोहित वेमुला भी क्या जबर्दस्त बंदा था!
रोहित की वजह से पैदा हुए सामाजिक बदलाव के आंदोलन की काट के लिए हेडली, इशरत जहां, अफजल गुरु, हाफिज मोहम्मद सईद और जाने किस-किस को मैदान में लाना पड़ गया.
तीन साल पहले मरे हुए अफजल गुरु को, कब्र से निकालकर झाड़ – पोंछकर जिंदा करने के लिए दलछुट अतिवामपंथी, संघी और मीडिया एकजुट हो गए हैं. उन्हें एक पवित्र धागे ने जोड़ रखा है.
जेएनयू के भ्रांतिकारियों के लिए:
अपनी फ्रैंड लिस्ट के संघ भक्तों की टाइमलाइन चेक कीजिए. रोहित वेमुला सांस्थानिक हत्याकांड के बाद संघियों का दम फूला हुआ था, वे अपने बिल में घुस गए थे… वे फिर बिल से निकल पड़े हैं.
जानते हैं क्यों?
हिंदू बनाम मुसलिम का हर विवाद, सेकुलरिज्म बनाम कम्युनलिज्म की हर डिबेट RSS के लिए टॉनिक है. RSS को टॉनिक मत पिलाइए. शुरुआत के तौर पर, संघ को हिंदू संगठन कहना बंद कीजिए. वह सवर्ण पुरुषों का ब्राह्मणवादी संगठन है.
JNU के लोग, अगर चैनलों पर चेहरा चमकाने वाले JNU के छात्र नेताओं को चैनलों पर जानें से रोक सकें, तो मीडिया का बुखार अपने आप उतर जाएगा.
दो दिन के लिए करके देखिए. ऑल पार्टी सहमति बनाकर कीजिए. कोई न जाए.
चेहरा चमकाने के चक्कर में JNU के नेता लोग जाने-अनजाने में आग में घी डाल रहे हैं.
बंद कर देना चाहिए… मैं समर्थन में हूं.
लेकिन जनेयू तो क्या, देश की किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी को वे बंद नहीं करेंगे. इसकी वजह यह है कि देश की 42 सेंट्रल यूनिवर्सिटी से SC, ST, OBC के मिलाकर सिर्फ एक वाइस चांसलर हैं. टॉप की पोस्ट यानी प्रोफेसर पदों पर 90%तक सवर्ण जातियों का कब्जा है. थोड़ी विविधता है तो असिस्टेंट प्रोफेसर लेबल पर. वहां भी आप देख सकते हैं कि कोटा के ज्यादातर पोस्ट साजिश के तहत खाली रखे गए हैं.
कर दो बंद.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी ‘जनेयू’ में कुल 612 में 29 असिस्टेंट प्रोफेसर OBC के हैं.
5% में सिमट गई है 52% की हिस्सेदारी. एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पद पर OBC कोटे से अभी पहली नियुक्ति नहीं की गई है. जो चार हैं, वे जनरल कैटिगरी से सिलेक्ट हुए हैं.