लेखकों, फिल्मकारों, और वैज्ञानिकों द्वारा पुरुस्कार लौटाने का गैरजरूरी विवाद अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि भक्तों और मीडिया ने एक और विवाद खड़ा कर दिया.
सबसे पहले तो मैं आमिर खान को मुबारकबाद देना चाहूँगा कि उन्होंने आज के हालात पर सोचा और उसे व्यक्त भी किया. वह चाहते तो चुप भी रह सकते थे पर उन्होंने बोला ! आज जब कुछ बोलना मुसीबत को न्योता देने जैसा है तो इस सन्दर्भ में बोलना एक खास मायने रखता है. आमिर खान का ये बयान सत्यमेव जयते में उठाये गए आधे अधूरे मुद्दों से काफी अलग है और एक खास मायने रखते हैं.
आज जब उनकी फिल्मों का जम कर विरोध हो रहा है तो मेरे एक दोस्त ने कहा कि वह आमिर खान के खास प्रशंसक हैं और उनकी आने वाली फिल्म का इंतजार करेंगे. मैं और मेरे जैसे कई लोग भी उसका इंतज़ार करेंगे और देखेंगे. हम उनकी कला के प्रशंसक है उनके हिन्दू या मुसलमान होने के नहीं. अच्छा हुआ कि अभी उनकी कोई फिल्म रिलीज़ नहीं हो रही वर्ना उनका विरोध करने वाले लोग इसे पब्लिसिटी स्टंट कह कर ख़ारिज कर देते.
यहाँ यह जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि अधिकतर लोग जो आमिर खान का विरोध कर रहें है उन्होंने वो साक्षात्कार देखा ही नहीं जिसकी वो मुखालफ़त कर रहे हैं. पुरे इंटरव्यू में उन्होंने ये कहा ही नहीं कि हिंदुस्तान असहिष्णु है. यह बात ठीक वैसी है कि अगर एक झूठ को सौ बार कहा जाए तो वह सच हो जाता है. सत्ता पक्ष, उनके समर्थक और मीडिया भी एक झूठ को सौ बार बोलकर सच साबित करने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने यह कहा था कि पिछले कुछ महीनो से असहिष्णुता बढ़ रही है. रोज़ रोज़ हिंसा की बढती घटनाओं कों पढ़ कर वह परेशान होते हैं और उनकी बीवी अपनी और उनके बच्चे की सुरक्षा को लेकर परेशान है. इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि उनकी बीवी ने यह सोचा था कि यह बेहतर नहीं होगा कि हम देश छोड़ दें. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि वह इस सुझाव के समर्थन में नहीं है लेकिन यह उदहारण बढती हुई असुरक्षा की भावना का प्रतीक है और यह दर्शाता ही कि आज असुरक्षा की भावना बढ़ रही है. यह सोच कर उन्हें असुखद लगता है.
अब इस बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा कि उन्होंने ये कहा है कि भारत असहिष्णु है और इसलिए वह भारत छोड़ना चाहते हैं. यह बात तथ्यतः गलत है कि उन्होंने ऐसा कहा है और इस आधार पर इनकी मुखालफ़त करना तो एकदम नावाजिब. उन्होंने कहीं भी देश की आलोचना करी ही नहीं बल्कि इस शासन की आलोचना करते हुए कहा था की पिछले कुछ महीनो के इस शासन में असहिष्णुता बड़ी है और वह इससे परेशान हैं. अब कुछ लोग इस शासन को देश का पर्याय कर प्रशासन की आलोचना को देश की आलोचना मानने लगे तो वह उनकी खुद की दिक्कत है. उन्हें पता होना चाहिए की यह देश कई मायने में उनके प्रशासन से बढ़ कर है और प्रशसन की आलोचना देश की आलोचना नहीं है.
अपने साक्षात्कार में वों आगे कहते हैं कि लोग असुरक्षित इसलिए महसूस कर रहें है क्योंकि उनके चुने हुए प्रतिनिधि हिंसा की इन घटनाओं का विरोध नहीं कर रहे. इन्हें देख कर यह भरोसा नहीं होता कि हमें न्याय मिलेगा. अब इस बयान में क्या गलत है? क्या यह बात सच नहीं है कि दादरी हादसे के बाद बी. जे. पी. के कई सांसदों ने इसकी भर्तसना करने की बजाय, इसे लोगों की भावनात्मक प्रतिक्रिया बताकर इसका औचित्य साबित करने की कोशिश की थी. सूत्रों की माने तो सत्ता पक्ष के कुछ लोग तो इसमें खुद शामिल थे. खुद इनके मुखिया कई दिनों तक इस हादसे पर चुप्पी लगाये बैठ थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
हमने अपने प्रतिनिधियों को इसलिए चुना है कि वह ऐसी कानून व्यवस्था कायम करे जिसमे हमे न्याय उम्मीद हो और हम सुरक्षित महसूस करे. लेकिन वह इस हिंसा का विरोध करने की बजाय इनका समर्थन कर रहें है. यहाँ तक इन घटनाओं के विरोध को देश विरोधी साजिश का हिस्सा साबित में लगे हें है और इसके खिलाफ हो रही हिंसा का समर्थन कर रहे हैं. इसका विरोध करने वालों के खिलाफ सरेआम फतवे जारी हो रहे है और यह शासन हाथ पर हाथ रख कर बैठा है. ऐसे में कैसे यकीन हो कि हमारे जनप्रतिनिधि ऐसी न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था कायम करेंगे जिसमे हम सुरक्षित महसूस कर सकें.
बहुत से लोग यह कह रहे हैं कि अगर हिन्दुस्तान असहिष्णु होता तो बॉलीवुड के सबसे बड़े तीन सितारे मुसलमान नहीं होते. वह आगे यह दावा करते हैं कि अगर यह बयान उन्होंने पाकिस्तान या किसी और इस्लामिक देश में दिया होता तो उन्हें गोली मार दी जाती. यहाँ मैं एक बार फिर याद दिलाना चाहता हूँ कि उन्होंने ऐसा कहा ही नहीं कि हिन्दुस्तान असहिष्णु है या पकिस्तान या कोई और इस्लामिक मुल्क ज्यादा सहिष्णु है. यह इनकी मनगढ़ंत कहानी है कि आमिर खान भारत को असहिष्णु बता रहें है और पकिस्तान को ज्यादा सहिष्णु.
अब बात आमिर के सुपरस्टार होने की. इनके सुपरस्टार बनने का कारण भारत में दशको पुराना धरमनिर्पेक्षता का ताना-बाना है जिसके कारण यहाँ के लोग यह देखकर किसी को सुपरस्टार नहीं बनाते कि वह हिन्दू या मुसलमान है. यहाँ कोई सुपरस्टार बनता है अपनी क़ाबलियत के बल पर और आमिर खान में वो क़ाबलियत थी. इस धरमनिर्पेक्षता में इस क़ाबलियत को स्वीकारने की क़ाबलियत है और इसका श्रेय इस सत्ता को नहीं हमारे दशकों के धर्मनिरपेक्ष इतिहास को जाता है. हां यह बात सच है की मौजूदा सत्ता में और इसके समर्थकों में आमिर की क़ाबलियत को स्वीकारने की क़ाबलियत नहीं है. यह क़ाबलियत यहाँ के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने में है जिसे यह कट्टरपंथी शासन बर्बाद करना चाहता है और हम सबको मिलकर इस ताने बाने को बचाना है.