अख़लाक़ को मारा किसने
गोमांस खाना या नहीं खाना मुद्दा नहीं है। इन हत्याओं के पीछे जो मुख्य मुद्दा है उसे हमसे आपसे छिपाया जा रहा है। और ऐसा सिर्फ बीजेपी ही नहीं कर रही। सारा सिस्टम एक साजिश के तहत इस तरह से काम कर रहा है ताकि आपको मूल बातों से दूर रखा जा सके।
इस पूरे मामले में जो सवाल उठने चाहिए वे नहीं उठ रहे। यह बात कोई नहीं कर रहा है कि अख़लाक़ को मारा किसने? अख़बार के मुताबिक अखलाक़ को गांव की भीड़ ने मारा। कोई यह नहीं पूछ रहा है कि है कि इस भीड़ में कौन कौन शामिल था।
आइए, थोड़ी हिम्मत जुटाइए और खुद से पूछिए किक्या आप इस भीड़ में शामिल नहीं थे? आप खुद से पूछिए कि क्या आप ख़ुद को अखलाक़ की मौत का जिम्मेदार मानते हैं? क्या आपमें इतनी हिम्मत है कि आप कहें, हाँ अखलाक़ को मैंने मारा है?
आज हम सब तेजी से किसी न किसी भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं। हम में से हर कोई या तो हिन्दू वाली भीड़ में शामिल है या मुसलमान वाली भीड़ में। हम ज़रुरत पड़ने पर कभी हम बिहारी भीड़ में शामिल हो जाते हैं तो भारतीय भीड़ में। बिना यह जाने- समझे कि भीड़ में शामिल होने के क्या नुकसान हैं हम अपनी निजी पहचान और स्वाभाव को छोड़ इस भीड़ में शामिल हो जा रहे हैं।
हमारे बीच कोई है जो कहे मेरी कोई पहचान नहीं है सिवा इसके कि मेरा नाम रहमान है याकि कि राम है? नहीं इसके लिए जो ज़रूरी हिम्मत चाहिए वह हम में नहीं है। हमारा धर्म, हमारी राजनीतिक पार्टियां लगातार इस कोशिश में लगी है कि हम किसी न किसी भीड़ के भाग बन जांय। ऐसा करने में धर्म के ठेकेदारों का और राजनीति करने वालों का फायदा है। भीड़ कितनी ही बड़ी हो, वह एक तरह से सोचती है। और एक तरह से सोचने वालों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में कितनी सहूलियत होती है, यह हम आप सब जानते हैं।
आज जो भीड़ अख़लाक़ को मारने के लिए जुटी थी और जो भीड़ कल अखलेन्द्र को मारने के लिए जुटेगी दोनों भीड़ में कोई फ़र्क़ नहीं होगा । सच मानिए वह भीड़ जो एक साथ किसी पार्टी या नेता के पीछे जाति या धर्म के नाम पर गोलबंद होती है, उसमें और इन हत्या करने वाली भीड़ में भी कोई फ़र्क़ नहीं होता। भीड़ का निर्माण ही आम जनता की भावना को उकसा कर किया जाता है। इसलिए हर बीड का इस्तेमाल भी उकसाकर काम करवाने के लिए किया जाता है।
अखलाक़ की निर्मम हत्या के खिलाफ आवाज़ उठाइये, लेकिन भीड़ बनकर नहीं। गोमांस खाने के पक्ष और विपक्ष में सवाल खड़ा कीजिये, मगर भीड़ बनकर नहीं कि मैं हिन्दू हूँ इसलिए मुझे इसके खिलाफ बोलना है, या मैं मुस्लमान हूँ इसलिए मुझे इसके पक्ष में उठ खड़ा होना है।
(पूरा लेख उर्दू अखबार में प्रकाशित होने के बाद साझा किया जाएगा।)