प्रदीप अवस्थी हिल्ले ले के लिए नियमित लिख रहे हैं। लेकिन इस लेख में कुछ ऐसा है, जो इसे प्रकाशित करने में ज़रा भी देर न करने की मांग करता है। इसको पढ़िए और बिना मेरी सम्पादकीय टिप्पणी को पढ़े, पढ़िए और बताइए कि हम अगर कहीं खड़े हैं, तो हमारे पैरों के नीचे की ज़मीन कितनी मज़बूत है और अगर मज़बूत है, तो उसमें कितनी लाशें दबी हुई हैं….
होने को तो यह एक कहानी भी हो सकती थी और महज़ कहानी ही होती तो बेहतर था | ऐसा भी हो सकता था कि इस देश का एक बड़ा हिस्सा,जो आँखें मूँदे सिर्फ़ नौकरी करने,पैसे कमाने,शादी करने,बच्चे पैदा करने,उनको पालने,उनकी शादी करने और फिर मर जाने में यक़ीन रखता है,अपनी आँखें और बुद्धि थोड़ी सी खोलकर,नाक की सीध में ज़िन्दगी बिताने से बेहतर,अपने घर और दफ़्तर की खिड़कियों से बाहर झाँककर,लाल होती ज़मीन और काले होते आसमान की तरफ़ भी देख सकता था | लेकिन ऐसा बहुत कुछ नहीं हुआ,जो हो सकता था और हम जैसे कितने ही मर-खप जाएँगे,होगा भी नहीं |
नेपाल में भूकंप आता है | वहाँ से विस्थापित लोग,कौन कहाँ जाता है,क्या पता ! दो औरतों को गुडगाँव के एक फ्लैट में पाया जाता है जिनका महीनों बलात्कार होता है,सामुहिक बलात्कार होता है और करने वालों को देश के बाहर जाने दिया जाता है | आरोपी सऊदी डिप्लोमेट अपने देश चला जाता है और सरकार जाने देती है | उसका किया बलात्कार शायद इतना जघन्य नहीं !
होने को तो समाज ऐसा भी हो सकता था कि इन औरतों का ख्याल रखा जाता और बिना किसी मानसिक प्रताड़ना के इन्हें जीने दिया जाता | पर क्या करें ! हमारे महान वेदों और शास्त्रों की नींव पर हमने एक अत्यंत संस्कारी और ऐसे नारी-पूजक समाज का निर्माण किया है जहाँ इन औरतों को इनके घर वाले भी अपनाने में बेईज्ज़ती महसूस करते हैं |
वर्धा के पास मैं एक गाँव में एक किसान के घर जाता हूँ | कुछ समय पहले उसके पिता ने अचानक कुछ सोचते हुए रात के तीन बजे घर के आँगन में बने कूँए में कूदकर जान दे दी | अपने घर के हालात बताते हुए वो फूट कर रो पड़ा | अपनी यही घुटन मैं जब दिल्ली में रहने वाले अपने एक दोस्त के भाई को बताता हूँ,और जब वो कहता है कि यह लोग कामचोर हैं,इन्हें आदत पड़ गई है माँगते रहने की और तुम लोग चाहते हो कि सरकार इन्हें फ्री में पैसे बाँटे,मेरा मन करता है कि या तो मैं उसका सिर फोड़ दूं या उसे थोड़े दिन वहाँ जाकर रहने के लिए कहूँ |
सौ दिन से ऊपर से चली आ रही फ़िल्म इंस्टिट्यूट के छात्रों की हड़ताल और अब भूख हड़ताल,से जिस सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ता,जो सरकार कुछ दो सौ छात्रों से बात करके कोई उपाय निकालने की इच्छुक नहीं है,जो गजेन्द्र चौहान जैसे ढपोरशंख को पुणे फ़िल्म इंस्टिट्यूट में डायरेक्टर बनाना चाहती है,वो संभवतः देश की अब तक की सबसे कमज़ोर सरकार है |
साहित्यकारों और समाजसेवियों की हत्या की जाने लगे और सरकारें इस पर कुछ ना बोलें,लगातार आत्महत्या करते किसान कभी किसी बड़ी समस्या के तौर पर सामने ना उभरें,पीढ़ियों से जातिवाद और इसके नाम पर अत्याचार चलता आ रहा हो,न्याय इस हिसाब से बाँटा जाए कि कौन संख्या में कम है,कौन ज़्यादा,मज़दूरों की हालत का जायज़ा कभी ना लिया जाए,ऐसे देश के सदियों से महान होने की जब आप पीपनी बजाते हैं,तो मैं चाहता हूँ आपको थोड़े-थोड़े दिन के लिए सबका जीवन जीने को दिया जाए |
थोड़े दिनों के लिए आपकी आने वाली पीढ़ियों का पढ़ने का अधिकार छीन लिया जाए,मंदिरों में ना घुसने दिया जाए,मैला ढोने का काम कराया जाए,बिना किसी अपराध के बेवजह जेलों में ठूसा जाए,ज़मीनें छीनी जाएँ | सुनिए,थोड़े दिन कश्मीर रह आइए | वहाँ आपको गो बैक इंडिया दीवारों पर लिखा मिलेगा | या असम,जहाँ की ख़बरें आपका पसंदीदा न्यूज़ चैनल रात नौ बजे आपकी थालियों में नहीं परोसता | जिनको आप नक्सली कह देते हैं,उनके पास भी रह आइए थोड़े दिन | अभी नाना पाटेकर ने कहा कि जो किसान आज आत्महत्या कर सकता है,अपना गला दबा सकता है,वो कल को आपका गला भी दबा सकता है | इनको नहीं सुना गया और इन्होंने कल को कोई विद्रोह कर दिया,तो आपके लिए आसान रहेगा कि इन्हें नक्सली या देशद्रोही साबित कर दिया जाए |
पोर्न बैन,मीट बैन,बीफ़ बैन,डाक्यूमेंट्री बैन,ऐसे मुद्दों से लोगों को बरगलाए रखने वाली सरकार यक़ीनन देश के लोगों के हित में नहीं,अपनी सत्ता और ताक़त को बचाए रखने और बढ़ाते जाने के हित में कार्यरत है |
जो लोग देश से बहुत प्यार करने की बातें करते हैं,मैं उनसे देश का मतलब ज़रूर जानना चाहता हूँ | क्या है देश ? मानचित्र,ज़मीन का टुकड़ा,झंडा,छब्बीस जनवरी,पंद्रह अगस्त,पाकिस्तान का दुश्मन,क्रिकेट टीम ? क्या है देश ?जो लोग मेरा भारत महान के नारे लगाते हैं और इसे महान देश बताते हैं,वो एक बार बताएं कि उनके लिए क्या है देश और उनकी विस्तृत जानकारी में देश का दायरा कितना बड़ा है |
काश कि जो लोग अपने देश से बहुत प्यार करते हैं,वो देश के लोगों से भी उतना ही प्यार कर पाते | उनके दुखों,तक़लीफ़ों और बेबसी सी भी उतना ही प्यार कर पाते |
युवा कवि और अभिनेता हैं। इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद कुछ समय नौकरी की और फिर थिएटर करने दिल्ली चले आए। तीन साल अरविंद गौड़ के अस्मिता थिएटर के साथ अभिनय किया और अब मुंबई में हैं। पिछले कुछ समय से अभिनय से भी कहीं ज़्यादा लेखन, प्रदीप अवस्थी की कविताएं ऑनलाइन धूम मचाए हुए हैं, बेहद तीखी और मारक कविताएं। प्रतिभाशाली युवा कवियों में नाम शुमार।
Very nicely written. Keep it up pradeep.