अमेरिका, 1964.
अमेरिका की ब्लैक आबादी वोटिंग के अघिकार और भेदभाव के ख़ात्मे के लिए सिविल राइट्स आंदोलन कर रही है। भयानक दमन चल रहा है। श्वेत नस्लवादी समूह लगातार उनपर ख़ूनी हमले कर रहे हैं। लोग मारे जा रहे हैं। घर जलाए जा रहे हैं।
इस आंदोलन का साथ देने के लिए लगभग 1,000 श्वेत युवक पढाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़ते हैं। श्वेत नस्लवादी उनमें से चार की हत्या कर देते हैं। सैकडों श्वेत युवक ज़ख़्मी होते हैं। गिरफ़्तारियाँ होती हैं। मैकएडम्स ने अपनी किताब Freedom Summer में इन श्वेत युवकों का ब्यौरा लिखा है। ये स्टूडेंट अश्वेतों के पक्ष में नहीं थे, वे इंसानियत और न्याय के पक्ष में थे। वे राष्ट्र के साथ थे।
भारत के सवर्ण युवकों ने अभी तक इस पैमाने पर फ़्रीडम समर या फ़्रीडम विंटर नहीं किया है।
वे आरक्षण के खिलाफ खुद को आग लगा लेंगे, लेकिन जाति और जातिवाद के खिलाफ वे एक शब्द न बोलेंगे।
भारत में भगाना की बेटियों के लिए सिर्फ दलित आंदोलन करता है और हाशिमपुरा के दंगा पीड़ितों के लिए सिर्फ मुसलमान रोता है। मिर्चपुर और डांगावास सिर्फ दलित समस्या है, और दांतेवाडा सिर्फ आदिवासियों की दिक़्क़त है।
और आप कहते हैं कि यह देश बीमार नहीं है और कि यह मनोरोगियों का देश नहीं है? इस देश में अगर आप मनोरोगी नहीं हैं तो या तो उन तीन बुज़ुर्गों की तरह मारे जाएँगे या पागलखाने के लायक समझे जाएँगे।