दो ही दिन पहले, हम ने युवा लेखक कृष्णकांत की एक खुली चिट्ठी प्रकाशित की थी। सुखद है कि कृष्णकांत ने हिल्ले ले के लिए नियमित लेखन को हां कह दिया है। कोशिश करेंगे कि उनका एक साप्ताहिक लेख आप तक पहुंचे। फिलहाल कृष्णकांत की हाल-फिलहाल के माहौल पर चिंता जताते हुए, यह टिप्पणी हम इस आशा के साथ प्रकाशित कर रहे हैं कि आप इसको पढ़ कर समझेंगे कि देश दरअसल ऐसे चलने के लिए सरकार नहीं चुनी जाती है।
- मॉडरेटर
किसी राजनीतिक, धार्मिक या जातीय संगठन की ओर से बुद्धिजीवियों को चुन—चुनकर धमकी और उनकी हत्याएं किसी लोकतंत्र के लिए सामान्य घटनाएं नहीं हैं. वह भी तब, जब लगातार ऐसा हो रहा हो. दूसरे, यह सब सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. अल्पसंख्यकों को लेकर घृणास्पद बयानबाजी, लगातार किसी न किसी राज्य में धार्मिक टकराव करवाने की कोशिशें, मीट बैन करने का अभियान, बैन हो जाने के बाद मंदिर के सामने खुद ठेला लगाने का अभियान, गौमांस बैन करने का अभियान, बैन हो जाने पर गौमांस भोज का आयोजन करने की घोषणा समाज को अस्थिर करने की कोशिशों का साफ प्रमाण है. मजे की बात है कि यह सब एक ही धर्म और विचारधारा से जुड़े लोग कर रहे हैं. यह सारी घटनाएं एक ही सिलसिले की तमाम कड़ियां हैं. यह कुछ घटनाएं हैं जिनपर गौर कीजिए. इन सारी घटनाओं पर अब तक कोई निंदा तक नहीं हुई है, ठोस कार्रवाई की बात जाने दीजिए. इन घटनाओं के होने पर मंथन कीजिए. ये राष्ट्रवादी हिंदुत्व के कुछ नमूने हैं:
- जनवरी, 2015: तमिल लेखक पेरूमल मुरूगन को धमकी. मुरूगन ने कहा ‘मैं एक लेखक के रूप में मैं मर चुका.’ उन्होंने लिखना बंद कर दिया.
- फरवरी, 2015: मराठी लेखक गोविंद पनसारे की हत्या. वे अनेक मजदूर संगठनों से जुडे थे तथा अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह के लिए आंदोलन चलाते थे.
- मई, 2015: समाज विज्ञानी व ‘मैं हिंदू क्यों नहीं हूं’ के लेखक कांचा आयलैया पर मुकदमा दर्ज. उन्हें उनके लेख ‘क्या ईश्वर लोकतांत्रिक है’ के लिए ब्राह्मणवादी संठनों द्वारा प्रताडित किया जा रहा है.
- 30 अगस्त, 2015: कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या. उन्होंने मूर्ति पूजा कर विरोध किया था.
- 31 अगस्त, 2015: कन्नड़ लेखक को केएस भगवान को जान से मारने की धमकी. -सितंबर, 2015: मराठी लेखक भालचंद्र नेमाडे को धमकी. नेमाडे ने ब्राह्मणवाद के पाखंडों का विरोध किया था.
- सितंबर, 2015: हिंदू चरमपंथियों के लगातार दबाव के कारण मलयालम लेखक एमएम बशीर को पिछले दिनों अपना स्तंभ बंद करना पड़ा. भाई लोगों को एतराज था कि बशीर मुसलमान होने के बावजूद राम पर क्यों लिख रहे हैं?
- सितंबर, 2015: पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल को गालियां और मारने की धमकी. यह अभियान काफी देर तक ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा.
बाकी छिटपुट घटनाओं को छोड़ दीजिए. लिस्ट लंबी है. ये किन लोगों का झुंड है जो कहीं भी टूट पड़ता है? केंद्र सरकार की आलोचना से लेकर मूर्तिपूजा का विरोध, आसाराम की आलोचना, राधे मां की आलोचना आदि पर जान से मारने और गालियां देने पर तुला है. क्या पाकिस्तान विरोधी हिंदू उन्माद में कम से कम सीरिया बन जाना है?
वे कौन लोग हैं जो सामान्य राजनीतिक पोस्ट पर भी अपनी धार्मिक भावनाओं में आग लगा लेते हैं? वे कौन लोग हैं जो कुपोषण, भुखमरी और किसान आत्महत्याओं पर पोस्ट लिख देने पर देशभक्त हो जाते हैं और अपने फटे में पैबंद लगाने की जगह लिखने वाले को ही गालियां और धमकियां देने लगते हैं? इस मूर्खतापूर्ण धार्मिक गुंडई का अंत कहां है?
यदि आपके पास आसाराम के समर्थन में भी तर्क, गालियां और गोलियां हैं तो समझिए कि आप पागल हो चुके हैं. अपना इलाज कराइए. दो चार लोगों को मार देने के बावजूद आप मध्यकाल की पशुता हासिल नहीं कर सकेंगे. इंडिया के लिए दुबले हुए जा रहे हैं तो जरा पश्चिम की ओर देखिए. वे रोज नये ग्रह और नई गैलेक्सी खोज कर रहे हैं. आप मुर्गे और बूचढ़खाने के खुलने बंद होने पर लड़ मर रहे हैं. आप मल—मूत्र के दिव्य प्रभाव पर राष्ट्रीय बहस कर रहे हैं. आप बकरीद की छुट्टियां खतम करने पर सारी ऊर्जा लगा रहे हैं.यह विश्वगुरु होने के नहीं, विश्व वैशाखनंदन होने के लक्षण हैं.
कृष्णकांत कवि-लेखक हैं। पत्रकारिता की नौकरी छोड़ कर, शब्दांकन के नाम से अपना प्रकाशन आरम्भ किया है। सरोकारी होने की दिक्कत के चलते, तमाम ऐसे मुद्दों पर लिखने को मजबूर हैं, जिन पर तमाम बड़े लब सिले हुए हैं।
boudhik diwaaliyepan ki ye nishani hai…………lekhakon ki ye kurbaani nirrathk nahi jayegi