2015 का अगस्त केंद्र सरकार के लिए अच्छा नहीं रहा, तिलमिलाहट और खीझ से भरा सरकार का ये कदम, शायद इस महीने की सबसे बड़ी ख़बर थी, जिस पर मुख्यधारा का मीडिया चर्चा करना ज़रूरी नहीं समझेगा। ख़बर बड़ी है और यह है कि खीझी हुई केंद्र सरकार, गृह सचिव ही नहीं, गृह मंत्री से इतनी नाराज़ है कि बिना गृह मंत्री की राय लिए या उनको सूचना दिए, वित्त मंत्रालय की सलाह और प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा से केंद्रीय गृह सचिव को हटा दिया गया है।
केंद्र सरकार ने अचानक लिए एक फैसले में 1979 बैच के केरल काडर के आईएएस एल सी गोयल को केंद्रीय गृह सचिव के पद से हटा कर, इंडियन ट्रेड प्रमोशन ऑर्गेनाइजेशन (आईटीपीओ) का सीएमडी बना दिया है, जबकि उनकी जगह 1978 बैच के आज ही (सोमवार) को सेवानिवृत्त होने जा रहे आईएएस राजीव महर्षि को केद्रीय गृह सचिव नियुक्त कर दिया है। आज जबकि राजीव महर्षि की सेवानिवृत्ति के कार्यक्रम की तैयारियां हो रही थी, उस बीच केद्र सरकार ने उनका कार्यकाल 2 साल बढ़ाते हुए, उनकी नियुक्ति अगले दो साल के लिए केंद्रीय गृह सचिव के तौर पर कर दी। नृपेंद्र मिश्रा को वापस बुलाने के बाद यह इस तरह का दूसरा इतना बड़ा मामला है और ज़ाहिर है इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके करीबी वित्त मंत्री अरुण जेटली की सीधी नाखुशी ही सबसे बड़ा कारण है।
एल सी गोयल से पीएम और एफएम की नाराज़गी की वजहें बेहद ग़ौर करने लायक हैं, क्योंकि दरअसल उन वजहों को किसी तरह के देश हित से कोई वास्ता नहीं है, बल्कि कारपोरेट और बीजेपी-संघ के निजी हित और निजी दुर्भावना का मामला है। एक समाचार चैनल (एनडीटीवी) को अंदरूनी स्रोतों से प्राप्त ज़रा इन कारणों पर एक नज़र डालिए।
- सबसे अहम कारण के तौर पर मामला सन टीवी के 37 चैनलों के लाइसेंस का है। यह वही सन टीवी है, जिसके मालिकान की पिछली यूपीए सरकार के दौरान के घोटालों में संलिप्तता को लेकर भाजपा ने बवाल मचाया और चुनावी मुद्दा भी बनाया था। सन टीवी के 37 चैनलों को गृह मंत्रालय ने हरी झंडी देने से इनकार कर दिया था- वजह सन टीवी के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग और भ्रष्टाचार से जुड़े तीन मामलों में चल रही जांच बताई थी। लेकिन इस मामले में वित्त मंत्री का सीधा हस्तक्षेप था और ऑन द रेकार्ड उनकी नोटिंग थी कि ये लाइसेंस दे दिया जाना चाहिए। यानी कि कारपोरेट भ्रष्टाचार के जिन मामलों का विपक्ष में रहते बीजेपी विरोध करती थी, अब उन्ही को संरक्षण दे रही है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री तीस्ता सेतलवाड़ के खिलाफ लादे जा रहे मुकदमों को लेकर पूर्व गृह सचिव के रवैये से नाखुश थे। पूर्व गृह सचिव एल सी गोयल का तीस्ता के खिलाफ मामलों, खासतौर पर सीबीआई जांच को लेकर रवैया पीएम की इच्छा के खिलाफ था। विशेष रूप से मुंबई हाईकोर्ट की टिप्पणियों के बाद पूर्व गृह सचिव, चाहते थे कि इस मामले में जल्दी फैसला न लिया जाए, त्वरित कार्रवाई की ज़रूरत नहीं है और इस मामले में और विचार की आवश्यकता है। ज़ाहिर है इस मामले में पीएम मोदी की निजी रुचि थी और ये बात उनको नहीं भाई।
- तीसरा मामला भी बेहद अहम है, देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से भी। पूर्व गृह सचिव गोयल, नगा समझौते पर पीएमओ के रवैये से संतुष्ट नहीं थे। उनका मानना था कि नगा समझौता, आखिर इतनी जल्दबाज़ी में कैसे लिए जा सकता है कि संविधान सम्मत ढंग से गृह मंत्रालय को भी इस बारे में जानकारी न दी जाए। क़ानूनन, इस तरह का समझौता गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला विषय है, इसलिए एल सी गोयल ने इस समझौते की फाइलें तलब कर ली थी। पीएम को जानने वाला कोई भी शख्स समझ सकता है कि उनको अपने फैसलों पर सवाल उठाने वाले नहीं भाते हैं।
- चौथा मामला सबसे अहम है क्योंकि ये एक ऐसा आरोप है, जिसे गोयल के खिलाफ हथियार बनाया जाएगा, जबकि इस मामले को कोई साबित ही नहीं कर सकता है। सरकार का कहना है कि उनका अपने संयुक्त सचिवों पर नियंत्रण नहीं था। ज़ाहिर है कि इस तरह का कोई आरोप साबित नहीं किया जा सकता है, लेकिन किसी भी अधिकारी को हटाने के लिए सरकार के विशेषाधिकार के अंतर्गत आता है, क्योंकि अगर गोयल अदालत नहीं जाते हैं, तो सरकार से इस बारे में कोई तथ्य नहीं मांग सकता है।
इस मामले में सबसे अहम बात जो उभर कर आई है, वह ये है कि पीएम, वित्त मंत्री और गृह मंत्री के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह, नागपुर के सबसे करीबी लोगों में से हैं और वह इस निर्णय से काफी नाराज़ बताए जा रहे हैं। इस सरकार के आने के बाद से यह किसी अधिकारी की, उसकी तेज़-तर्रार और स्वतंत्र कार्यशैली के कारण तीसरी पदच्युत किए जाने की घटना है। गोयल को इस पद पर 2 साल के लिए नियुक्त किया गया था, जबकि अभी उनको सिर्फ 6 माह ही हुए थे।
इस मामले के बाद पहले से ही सरकार के अंदर बन गए मंत्रियों के पीएम के गुट के खिलाफ होने में सक्रियता में तेज़ी आएगी। इसका असर आपको सामने नहीं दिखाई देगा, या फिर पीआर के सहारे उसे छिपा दिया जाएगा। लेकिन बीजेपी के संगठन के अंदर अब माहौल तेज़ी से बदल रहा है। भाजपा के अंदर एक पूरा खेमा है, जो सिर्फ बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों के इंतज़ार में है। अगले साल भाजपा का नया अध्यक्ष चुना जाना है और अमित शाह का दोबारा अध्यक्ष बनना, बिहार के नतीजों पर भी निर्भर करेगा। पार्टी का अहम संगठन हिंदी पट्टी में है और वहां के अहम नेताओं की उपेक्षा से कार्यकर्ताओं में भी अच्छा संदेश नहीं जा रहा है।
जिस तरह से बिना राजनाथ सिंह की सहमति लिए, गृह सचिव को हटाया गया है, वह कहीं न कहीं राजनाथ सिंह पर भी अप्रत्यक्ष वार माना जा रहा है। ज़ाहिर है कि संघ के मुख्यालय तक, अब तक यह बात जा चुकी होगी। ऐसे में संघ के लिए अपने लोगों को मज़बूत बनाए रखना बड़ी चुनौती है। यानी कि सरकार की अहम चुनौती भी अब देश और संसद को नहीं, पार्टी और कैबिनेट को साधना है, जिसके लिए फिलहाल कोई कोशिश नहीं दिखती है, बल्कि पीएम और जेटली ने दूसरे खेमे पर घातक वार कर दिया है। इंतज़ार कीजिए अगले कुछ महीनों में बीजेपी के अंदर, कांग्रेस की बीमारी के लक्षण दिखाई देंगे।
विश्लेषण -मयंक सक्सेना, भूतपूर्व टीवी पत्रकार और वर्तमान स्वतंत्र लेखक-कवि हैं।