कुछ लोग खाद होते हैं.
खाद का इतिहास नहीं लिखा जाता,
कुछ समय बाद नजर भी नहीं आता,
लेकिन यह बड़ी जरूरी चीज है
इसके बिना फसल नहीं होती है
इसलिए खाद को भूलिए मत!
इन दिनों जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी को पास से देखने का मौका मिला. कई कोर्स की एडमिशन लिस्ट देखी. लगभग हर कोर्स में SC-ST-OBC स्टूडेंट्स की संख्या 50% से ज्यादा है. भारतीय समाज की विविधता इस कैंपस में खूब दिखती है. लड़कियों की कुल संख्या लड़कों से ज्यादा है. शारीरिक रुप से अन्य तरह से काबिल छात्र भी अच्छी संख्या में हैं. दक्षिण और पूरब का अच्छा प्रतिनिधित्व है.
ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब ऐसा नहीं था.
1990 में यह विश्वविद्यालय आरक्षण विरोधी आंदोलन का केंद्र था. 2009 के आसपास यहां के शिक्षकों और प्रशासन ने ओबीसी रिजर्वेशन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी. वाइस चांसलर बी. बी. भट्टाचार्य की शह पर आदित्य मुखर्जी कमेटी ने आरक्षण को रोकने का बंदोबस्त कर दिया था.
उस दौर में यहां एक बड़ा आंदोलन हुआ था. लड़ाई कोर्ट और कोर्ट के बाहर दोनों जगह लड़ी गई थी. आखिरकार जेएनयू प्रशासन का झुकना पड़ा था. आज JNU में जो सामाजिक विविधता है, उसका श्रेय इस संघर्ष को जाता है. हजारों छात्रों का एडमिशन आज इसलिए हो पाता है, क्योंकि वह लड़ाई लड़ी गई थी.
उस संघर्ष में शामिल हर दोस्त का नाम ले पाना संभव नहीं है, इनका इतिहास कोई लिखता भी नहीं है. लेकिन कुछ नाम जो याद आ रहे हैं वे ये हैं. लिस्ट लंबी कीजिए.
Arun Kumar, Anil Kumar Jitendra Yadav, Munni Bharti, Pindiga Ambedkar,Sucheta De, Prof S.N Malakar, Dinesh Maurya, Prof Vivek Kumar, Anoop Kumar, Gurinder Azad, गंगा सहाय मीणा, Kedar Kumar Mandal, Rajesh Kumar Mandal, Ali Anwar Ansari, Ambumani Ramados, Adv. Subbarao, Abhishek Kumar Yadav, तापस दा, शरद यादव, rajnarayan, Prof, Sona Jharia Minz, Sunil Sardar, सुरेंद्र मोहन, डॉ. Ram Chandra, प्रोफेसर एलोने, शरद यादव, Udit Raj, प्रोफेसर लोबियाल, कांचा इलैया, गेल ऑम्वेट, Anoop Patel, H.L. Dusadh …….
और नाम जोडि़ए.सैकड़ों लोग इस आंदोलन में शामिल थे, जिसकी वजह से JNU आज ऐसा है. खाद को भूलिए मत. नाम किसी क्रम में नहीं है.