भीड़ के ख़तरों को तुम नहीं जानते
भीड़ सुनती है सिर्फ लाउडस्पीकर को
भीड़ सच नहीं सुनती
भीड़ सुन नहीं सकती
कैसे सुन सकता है कोई साफ-साफ किसी शोर को
भीड़ आती है किसी बांध के टूटने के सैलाब सी
भीड़ विपदा होती है
जो गिर पड़ती है मनुष्यता पर
जिसे रोका जा सकता है सिर्फ मनुष्य हो कर
भीड़ बड़ी कारगर है
मंदिरों-मस्जिदों-गिरजों-गुरुद्वारों में
कच्चा माल है भीड़
भीड़ कच्चा माल है उन्माद के लिए
भीड़ ईधन है सियासत का
भीड़ में फंसी अकेली लड़की याद है
और खो गया बच्चा
भीड़ के ख़तरों को तुम नहीं जानते
भीड़ तय नहीं करती है
भीड़ को तय कर के ही भेजा जाता है
भीड़ जुट जाती है
कभी नहीं जुटती
दोनों बातें विरोधाभासी हैं भीड़ के लिए
वहीं जुटती है जहां ज़रूरत नहीं
वहां नहीं, जहां ज़रूरत है
भीड़ देखती रहती है लोग सड़क पर तड़पते मर जाते हैं
भीड़ मार देती है लोगों को तड़पा कर
देश से राष्ट्र बनने तक
भीड़ ही तो है संविधान और धर्म के बीच का फासला
जो कम होती है तो क़ानून का राज है
बढ़ जाती है तो धर्म
और बनी रहती है तो हो जाती है संविधान
भीड़ ख़ुद नहीं आती
भीड़ बुलाई जाती है
बुलाई गई भीड़ कारगर है कुर्सियों के लिए
भीड़ ढो लेती है कुर्सी
पाए गिर जाने पर भी
भीड़ आग है, लग जाती है बस्तियों मेंभीड़ पानी है, बहा ले जाती है समझ
भीड़ बरछी-त्रिशूल है, चीरती सीनों को
भीड़ लिंग है, रौंद देती कराहते जिस्मों में गुप्तांगों को
भीड़ अदालत है, बिना तर्क फैसले की
भीड़ सब कुछ है, अगर आप कुछ नहीं
भीड़ कुछ नहीं, अगर आप ने बुलाई है
भीड़ बिन बुलाए आ जाए
इसी से डरते हैं वो
इंतज़ार नहीं कर सकते उस पल का
इसलिए बुला लेते हैं भीड़
हट जाओ रास्ते से भीड़ आ रही है,
भीड़ आती जाएगी
भीड़ को तुम नहीं रोक सकते, भीड़ रौंद देगी तुम्हें
भी़ड़ तुम्हें रोकेगी नहीं, भीड़ रौंद देगी तुम्हे
भीड़ वेद है, भीड़ कुरआन
बाइबिल और ग्रंथ साहिब है भीड़
भीड़ में शामिल हो जाओ
भीड़ से बचना है तो
भीड़ आ रही है…भीड़ आ रही है…भीड़ छोड़ती नहीं है किसी को भी
– मयंक सक्सेना
great poem Each person sees the same place in a different way. do read my blogs to see India through my eyes: http://www.travelwithmukul.wordpress.com and http://www.enchantedforests.wordpress.com.
Nice Poem