उठा है तूफान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान हमारी काशी मे
ठगवा नगरी लूट किधर को भागेगा
साँसत में है जान हमारी काशी में
(टेक)–है कबिरा हैरान……
दानव सारे रूप धर रहे देवों का
बुद्धू है भगवान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
साधु की धज, धर्मध्वजा ले हाथों में
चढ़ बैठा शैतान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
दूजे का घर फूँक चढ़ा बाज़ारों में
माँग रहा सम्मान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान…..
धरम है परहित, अधमाई परपीड़ा है
तुलसी बाँटे ज्ञान, हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
भरे कठौती में गंगा रैदास कहे
नाचे ना हैवान, हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
हर पतझड़ के बाद कोपलें फूटी हैं
बैठो ना बस ‘छान’, हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
सुर बरसे चहुँ ओर बनारस बना रहे
बिस्मिल्ला की तान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
अहंकार के सारे सूरज डूबे हैं
मणिकर्णिका श्मशान हमारी काशी में
है कबिरा हैरान……
पंकज श्रीवास्तव आईबीएन-7 में एसोसिएट एडिटर हैं। इनका तख़ल्लुस परवेज़ है और कलम बेहद धारदार।