दिलीप साब,
गंगा जमुना वाले नहीं आप मेरे लिए मशाल वाले दिलीप साब हैं और हमेशा रहेंगे । मुंबई की उस रात जब आप अपनी पत्नी सुधा की जान बचाने के लिए चीख़ रहे थे तब मैं पटना के सिनेमा हाल में बैठा उस अनजान शहर की ख़ौफ़नाक चुप्पी से सहम गया था । उस रात आप हर आती जाती मोटर के पीछे भाग रहे थे, ऐ भाय कोई है ! आप जितनी बार भाय भाय पुकारते मेरे भीतर मुंबई सायं सायं करने लगती थी । दिलीप साब आपने उस रात एक ऐसी अदाकारी की मिसाल रच रहे थे जहाँ अभी तक कोई नहीं पहुँच पाया । जिसने अपनी बेबसी, घबराहट, चीख़ से महानगर के तिलिस्म को तोड़ा हो । मैं ऐसे किसी भी महानगर की कल्पना से कोसों दूर था जिसके अजनबीपन की गोद में एक दिन मुझे भी अपने वजूद के लिए चीख़ना था । अपने भीतर । हर चीख़ चीख़ने के लिए नहीं होती । कुछ सुनने के लिए भी होती है । आज भी दिल्ली में कई कोने हैं जो मुंबई की उस रात जैसे लगते हैं । हमारी वहीदा जी पर्दे पर दम तोड़ रही थीं और मेरा महानायक इस तरह लाचार मुंबई को खटखटा रहा था, मुझसे देखा नहीं गया । पटना होता तो साइकिल लिये हम दोस्तों के साथ आ जाते साब ।
सिनेमा हाल से निकलने के बाद भी मेरा किशोर मन आपकी उस चीख़ को भूल नहीं पा रहा था । दोपहर में ही मेरा क़स्बा जैसा पटना मुंबई की उस रात की तरह वीरान लगने लगा था । आपने महानगरों की उस बेबसी को जिस तरह से पोपुलर सिनेमा के दर्शकों के लिए पेश किया था वो अद्भुत था । दिल्ली आकर गोविंदपुरी की रातें ऐसी ही किसी आवाज़ से टकराती लगती थीं । हमें समझ नहीं आता था कि कभी कोई बुरा वक्त आया तो कौन सुनेगा । कौन आयोग । महानगर ट्रैफ़िक के शोर से भर तो जाते हैं मगर भीतर ही भीतर ख़ाली भी होते रहते हैं । अकेले लोगों की भीड़ अक्सर ख़ाली रह जाती है । आपका भाई की जगह भाय कहना उफ्फ ! ऐसे कहीं झकझोरा जाता है जनाब ।
शक्ति में आपके सामने अमिताभ कमज़ोर लगे थे । मशाल में अनिल कपूर अपने टीचर के सामने रिहर्सल करता हुआ अभिनेता । तब भी जब पोस्टर में अनिल को प्रमुखता दी गई थी क्योंकि वे उस वक्त उभरते स्टार थे । आपके बोलने और देखने का अंदाज़ हमेशा एक मास्टर की तरह नए अभिनेताओं को सीखाता रहेगा । आपके पास अमिताभ की तरह क़द नहीं था मगर जो धज था वो लाजवाब । जो ज़ुबान थी उसका कोई सानी नहीं । जो आँखें थीं उस जैसी नज़र कोई नहीं । मशाल की वहीदा का ख़ालीपन आपने कर्मा मेम नूतन की चूड़ियों की खनक से भर दिया था । क्या चांटा मारा था साब आपने अनुपम खेर को ।
आज जब न्यूज़ चैनलों पर एक बीमार और बच्चे की तरह दिखने वाले दिलीप साब आपको देखा तो मशाल की चीख़ से भर गया । आह मेरा नायक । सायरा बानों आपको खिचड़ी खिला रहीं थीं । आह मेरा महानायक । मुग़ले आज़म का सलीम सलीम न होता अगर आप दिलीप साब न होते । माँ मेरा दिल हिंदुस्तान नहीं जिस पर तुम्हारी हुकूमत चले । दिलीप साब इस संवाद को बोलने वाला कोई दूसरा न होगा । आप मेरे सगीना महतो । साला मैं तो साहब बन गया । मालूम नहीं आप एक दूसरे नाम को कैसे जीते रहे । उसमें कितना हिस्सा युसूफ का है और कितना दिलीप का । पर आप मेरे ज़हन में पूरे के पूरे दिलीप कुमार हैं ।
“मैं मर के भी मरूँगा नहीं तुम्हारे अंदर रहूँगा राजा ।” मशाल का आपका आख़िरी संवाद अमर है। आप हमेशा ही रहेंगे । दिलीप कुमार किसी न किसी अभिनेता में रहेंगे । जो भी ख़ुद्दारी ख़ुदमुख़्तारी से अभिनय करेगा उसमें दिलीप साब आप थोड़े बहुत तो होंगे ही । आप जल्दी ठीक हो जाइये ।
आपका एक सिनेदर्शक
(Courtesy: Kasba)
रवीश कुमार ‘एंकर’